Sumitranandan Pant Ka Sahityik Parichay: हेलो, आज की पोस्ट में आपका स्वागत है आज के पोस्ट में हम आपको बताएंगे (Sumitranandan Pant ka Sahityik Parichay) सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय। क्या आपको पता है कि (Sumitranandan Pant ka jeevan parichay) सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य में ‘छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से एक कवि माने जाते हैं।
आज हम आपको बताएंगे सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय (Sumitranandan Pant Ka Sahityik Parichay), उनकी शिक्षा (Sumitranandan Pant education), उनका जन्म कब हुआ था (Sumitranandan Pant ka janm kab hua) और कहां हुआ था (Sumitranandan Pant ka janm kahan hua tha) तथा उन्हें कितने पुरस्कार मिले (Sumitranandan Pant awards) और उनकी मृत्यु कब हुई (Sumitranandan Pant ki mrityu kab hui) थी तो चलिए बिना समय गंवाए शुरू करते है।
Sumitranandan Pant Ka Sahityik Parichay | सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय
Sumitranandan Pant Ka Sahityik Parichay: आपको बता दे की (Sumitranandan Pant ki jivani) सुमित्रानंदन पंत को सौंदर्य के प्रीतम कवि के रूप में जाना जाता है। इतना ही नहीं उन्हें ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी लोग जानते हैं। अगर आपको नहीं पता तो बता दे की सुमित्रानंदन पंत ने मात्रा छोटी सी उम्र में काव्य रचनाएं शुरू की थी। सुमित्रानंदन पंत ने मात्र 7 वर्ष की उम्र में हिंदी काव्य धारा में अपनी अलग पहचान बना ली थी।
उन्होंने काफी सारी अनुपम रचनाएं लिखी जिसमें उन्होंने ढेर सारी रचनाएं लिखीं लेकिन ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘चिदंबरा’, ‘युगांत’ और ‘स्वर्णधूलि’ काफी प्रमुख मानी जाती है। सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant in hindi) ने अपना पूरा जीवन लेखन में ही दे दिया था। उनकी हिंदी साहित्य में इतनी महान योगदान की वजह से उन्हें ‘पद्म भूषण’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ और ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार’ जैसे सम्मानों से नवाजा गया है।
आप सभी को बता दे कि जब भारत में टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ था तब उसका भारतीय नामकरण ‘दूरदर्शन’ सुमित्रानंदन पंत ने ही किया था। तो चलिए अब हम सुमित्रानंदन पंत के बारे में (Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay) विस्तार से जानते हैं।
Who Is Sumitranandan Pant | सुमित्रानंदन पंत कौन थे?
Who was Sumitranandan Pant: सुमित्रानंदन पंत एक महान कवि थे और उनका वास्तविक नाम ‘गोसाई दत्त‘ था। उनके पिता का नाम गंगा दत्त पंत था जो की एक समृद्ध जमींदार थे। उनके पिता अपने बगीचों से फलों और फूलों का व्यापार करते थे और वह बहुत ही ज्यादा अच्छा भी चलता था। सुमित्रानंदन पंत की माता जी का नाम सरस्वती देवी था वह एक घरेलू महिला थी।
(Who Is Sumitranandan Pant) सुमित्रानंदन पंत जब 5 वर्ष के थे तब उनकी माता का निधन हो गया था। जिसकी वजह से वह काफी ज्यादा दुखी थे और अपनी मां के बिना अपनी पूरी जिंदगी अधूरा ही महसूस करते थे। अच्छी बात तो यह है कि उनकी दादी ने कभी उन्हें ऐसा महसूस नहीं होने दिया था तो उनकी मां नहीं है। आप सभी को बता दे की सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant jivan parichay) अपने सारे भाइयों और बहनों में आठवीं स्थान पर थे और उनके सभी भाई बहनों की देखभाल उनके दादी और पिता ने जिम्मेदारी से की थी।
What Is The Real Name Of Sumitranandan Pant | सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम क्या था?
सुमित्रानंदन पंत का असली नाम ‘गोसाई दत्त पंत’ था। सुमित्रानंदन को गोसाई नाम में गोस्वामी तुलसीदास की छवि दिखाई देती थी। गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म बड़े ही अभाव में हुआ था और उन्हें अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ा था।
वह चाहते थे कि उन्हें कभी भी उन परिस्थितियों का सामना न करना पड़े इसलिए उन्होंने अपना नाम ‘गोसाई दत्त पंत’ से बदलकर सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant biography in hindi) रख लिया। सुमित्रानंदन पंत ने कहा था कि आकाशवाणी हुए साक्षात्कार की वजह से उन्होंने ऐसा किया।
How Did Kausani Influence Sumitranandan Pant?
सुमित्रानंदन पंत के नाम पर कौसानी में उनके पुराने घर को 'सुमित्रानंदन पंत वीथिका’ के नाम से जाना जाता है। वह वहां पर बचपन में रहते थे और आज उसे संग्रहालय के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है।
इसमें सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant Ka Sahityik Parichay) के व्यक्तिगत प्रयोग की वस्तुओं को रखा गया है जैसे की कपड़ों, कविताओं की मूल पांडुलिपियों, छायाचित्रों, पत्रों और पुरस्कारों को भी प्रदर्शित किया गया है। इनमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें उनकी व्यक्तिगत तथा उनसे संबंधित पुस्तकों को रखा गया है।
Which Is The Birthplace Of Famous Hindi Poet Sumitranandan Pant?
Sumitranandan Pant ka janm kahan hua tha: सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900ई. में हुआ था। उन्हें छायावादी बेहतरीन के कौशेय रवि सौन्दर्यावतार कवि नाम से जाना जाता है। उनका जन्म प्रकृति के सुरम्य क्रीड़ा स्थली कूर्मांचल प्रदेश के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के कौसानी नाम के गांव में हुआ था।
Sumitranandan Pant Ka Janm Kab Hua | सुमित्रानंदन पंत का जन्म कब हुआ था?
(Sumitranandan Pant Ka Janm Kab Hua) सुमित्रानंदन पंत का जन्म उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में कौसानी नाम के गांव में हुआ था। जैसा कि मैं आपको बताया कि सुमित्रानंदन पंत की माता के निधन के बाद उनका पालन पोषण उनकी दादी मां ने किया था। सुमित्रानंदन पंत को उनका गोसाई दत्त नाम बिल्कुल भी पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने उसे बदल दिया था। सिर्फ 7 साल की उम्र में ही उन्होंने लिखना प्रारंभ कर दिया था और अपनी अलग पहचान बनाई थी।
Sumitranandan Pant Education | सुमित्रानंदन पन्त की शिक्षा
सुमित्रानंदन पंत ने अपनी शुरुआती शिक्षा अल्मोड़ा से पूरी की थी। वह अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई के लिए 18 वर्ष की आयु में अपने भाई के पास बनारस गए हुए थे वहां से अपनी पूरी पढ़ाई करने के बाद वह इलाहाबाद चले गए और इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में स्नातक की पढ़ाई के लिए दाखिला ले लिए।
जब सत्याग्रह आंदोलन शुरू हुआ थातब सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant ka Sahityik Parichay) अपनी पढ़ाई को बीच में ही छोडकर महात्मा गांधी का साथ देने के लिए आंदोलन में चले गए थे। उसके बाद उन्होंने फिर कभी पढ़ाई करने की नहीं सोची लेकिन घर से ही वह हिंदी, संस्कृत और बंगाली साहित्य का अध्ययन करते रहें।
Sumitranandan Pant Poems | सुमित्रानंदन पंत की कविताएं
Sumitranandan Pant Ki Kavita - याद
बिदा हो गई साँझ, विनत मुख पर झीना आँचल धर,
मेरे एकाकी आँगन में मौन मधुर स्मृतियाँ भर!
वह केसरी दुकूल अभी भी फहरा रहा क्षितिज पर,
नव असाढ़ के मेघों से घिर रहा बराबर अंबर!
मैं बरामदे में लेटा, शैय्या पर, पीड़ित अवयव,
मन का साथी बना बादलों का विषाद है नीरव!
सक्रिय यह सकरुण विषाद, मेघों से उमड़ उमड़ कर
भावी के बहु स्वप्न, भाव बहु व्यथित कर रहे अंतर !
मुखर विरह दादुर पुकारता उत्कंठित भेकी को,
बर्हभार से मोर लुभाता मेघ-मुग्ध केकी को;
आलोकित हो उठता सुख से मेघों का नभ चंचल,
अंतरतम में एक मधुर स्मृति जग जग उठती प्रतिपल!
कम्पित करता वक्ष धरा का घन गभीर गर्जन स्वर,
भू पर ही आ गया उतर शत धाराओं में अंबर!
भीनी भीनी भाप सहज ही साँसों में घुल मिल कर
एक और भी मधुर गंध से हृदय दे रही है भर!
नव असाढ़ की संध्या में, मेघों के तम में कोमल,
पीड़ित एकाकी शय्या पर, शत भावों से विह्वल,
एक मधुरतम स्मृति पल भर विद्युत सी जल कर उज्वल
याद दिलाती मुझे हृदय में रहती जो तुम निश्चल!
Sumitranandan Pant Ki Kavitaen - वे आँखें
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन!
अह, अथाह नैराश्य, विवशता का
उनमें भीषण सूनापन,
मानव के पाशव पीड़न का
देतीं वे निर्मम विज्ञापन!
फूट रहा उनसे गहरा आतंक,
क्षोभ, शोषण, संशय, भ्रम,
डूब कालिमा में उनकी
कँपता मन, उनमें मरघट का तम!
ग्रस लेती दर्शक को वह
दुर्ज्ञेय, दया की भूखी चितवन,
झूल रहा उस छाया-पट में
युग युग का जर्जर जन जीवन!
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका!
लहराते वे खेत दृगों में
हुया बेदख़ल वह अब जिनसे,
हँसती थी उनके जीवन की
हरियाली जिनके तृन तृन से!
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा!
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह रह आँखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आँखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती!
बिना दवा दर्पन के घरनी
स्वरग चली,--आँखें आतीं भर,
देख रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मँगाया कोतवाल नें,
डूब कुँए में मरी एक दिन!
ख़ैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटते, फटती छाती!
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती।
मानव की चेतना न ममता
रहती तब आँखों में उस क्षण!
हर्ष, शोक, अपमान, ग्लानि,
दुख दैन्य न जीवन का आकर्षण!
उस अवचेतन क्षण में मानो
वे सुदूर करतीं अवलोकन
ज्योति तमस के परदों पर
युग जीवन के पट का परिवर्तन!
अंधकार की अतल गुहा सी
अह, उन आँखों से डरता मन,
वर्ग सभ्यता के मंदिर के
निचले तल की वे वातायन!
Sumitranandan Pant Poems In Hindi - बूढा चांद
कला की गोरी बाहों में
क्षण भर सोया है
यह अमृत कला है
शोभा असि,
वह बूढा प्रहरी
प्रेम की ढाल!
हाथी दांत की
स्वप्नों की मीनार
सुलभ नहीं,-
न सही!
ओ बाहरी
खोखली समते,
नाग दंतों
विष दंतों की खेती
मत उगा!
राख की ढेरी से ढंका
अंगार सा
बूढा चांद
कला के विछोह में
म्लान था,
नये अधरों का अमृत पीकर
अमर हो गया!
पतझर की ठूंठी टहनी में
कुहासों के नीड़ में
कला की कृश बांहों में झूलता
पुराना चांद ही
नूतन आशा
समग्र प्रकाश है!
वही कला,
राका शशि,
वही बूढा चांद,
छाया शशि है!
Sumitranandan Pant Poems - लहरों का गीत
अपने ही सुख से चिर चंचल
हम खिल खिल पड़ती हैं प्रतिपल,
जीवन के फेनिल मोती को
ले ले चल करतल में टलमल!
छू छू मृदु मलयानिल रह रह
करता प्राणों को पुलकाकुल;
जीवन की लतिका में लहलह
विकसा इच्छा के नव नव दल!
सुन मधुर मरुत मुरली की ध्वनी
गृह-पुलिन नांध, सुख से विह्वल,
हम हुलस नृत्य करतीं हिल हिल
खस खस पड़ता उर से अंचल!
चिर जन्म-मरण को हँस हँस कर
हम आलिंगन करती पल पल,
फिर फिर असीम से उठ उठ कर
फिर फिर उसमें हो हो ओझल!
Poems Of Sumitranandan Pant In Hindi - वाचाल
मोर को
मार्जार-रव क्यों कहते हैं मां '
'वह बिल्लीव की तरह बोलता है,
इसलिए !'
'कुत्ते की तरह बोलता
तो बात भी थी
कैसे भूंकता है कुत्ताे,
मुहल्लां गूंज उठता है,
भौं-भौं !'
'चुप रह!'
'क्यों मां ?...
बिल्ली बोलती है
जैसे भीख मांगती हो,
म्या उं..,म्या उं..
चापलूस कहीं का !
वह कुत्तेी की तरह
पूंछ भी तो नहीं हिलाती' -
'पागल कहीं का!'
'मोर मुझे फूटी आंख नहीं भाता,
कौए अच्छेो लगते हैं !'
'बेवकूफ !'
'तुम नहीं जानती, मां,
कौए कितने मिलनसार,
कितने साधारण होते हैं !...
घर-घर,
आंगन,मुंडेर पर बैठे
दिन रात रटते हैं
का, खा, गा ...
जैसे पाठशाला में पढ़ते हों !'
' तब तू कौओं की ही
पांत में बैठा कर !'
' क्यों नहीं, मां,
एक ही आंख को उलट पुलट
सबको समान दृष्टि से देखते हैं ! -
और फिर,
बहुमत भी तो उन्हीं का है , मां !'
' बातूनी !’
Sumitranandan Pant Ka Antim Kavya Kaun Sa Hai
(Sumitranandan pant ka antim kavya hai) सुमित्रानंदन पंत का काव्य में बहुत ही ज्यादा नाम था और उनकी आखिरी काव्य छायावादी कृति की ‘गुंजन’ थी।
Sumitranandan Pant Ki Rachna Hai | सुमित्रानंदन पंत की रचना कौन सी है?
(Sumitranandan Pant ki rachna hai) सुमित्रानंदन पंत ने अपने पूरे जीवन काल में अनेकों साहित्यिक रचनाएं लिखी है जिनमें से कुछ के नाम नीचे दिए गए हैं।
Sumitranandan Pant Ki Rachnaen | रचनाएँ
Sumitranandan Pant Ki Pramukh Rachnaen | प्रमुख रचनाएँ
Sumitranandan Pant Ki Rachnaye | अनूदित रचनाएं
Sumitranandan Pant Books | सुमित्रानंदन पंत की पुस्तकें
यहाँ हमने (Sumitranandan Pant books) सुमित्रानंदन पंत की पुस्तक का नाम बताया है:
Sumitranandan Pant Ko Unki Kis Rachna Par Gyanpith Puraskar Mila?
(Sumitranandan Pant ko gyanpith puraskar mila tha) सुमित्रानंदन पंत को ज्ञानपीठ पुरस्कार 1968 में मिला था। उन्हें यह पुरस्कार उनकी ‘चिदम्बरा’ कविता संग्रह से मिला था। इस काव्य संग्रह से उनकी चेतना की महान पहचान हुई है जिनमें 'युगवाणी' से लेकर 'अतिमा' तक की रचनाओं का संचयन है, जिसमें 'युगवाणी, 'ग्राम्या', 'स्वर्ण-किरण', 'स्वर्णधूलि', 'युगपथ', 'युगांतर', 'उत्तरा', 'रजतशिखर', 'शिल्पी', 'सौवर्ण और 'अतिमा' की चुनी हुई कृतियों के साथ 'वाणी' की अंतिम रचना 'आत्मिका' भी शामिल है।
(Sumitranandan Pant ko unki kis rachna par gyanpith puraskar mila) उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य के लिए दिया जाने वाला सबसे पहला पुरस्कार था। दरअसल इस पुरस्कार की शुरुआत साल 1965 में की गई थी। यह पुरस्कार भारत के किसी भी नागरिक को जो आठवीं अनुसूची में बताई गई 22 भाषाओं में से किसी भाषा में लिखना हो वह इस पुरस्कार की योग्य होता है। अगर कोई व्यक्ति इस पुरस्कार को लेने योग्य हो साथ में उसे 11 लख रुपए की धनराशि भी मिलती है और उसे प्रशस्तिपत्र और वाग्देवी की कांस्य की प्रतिमा भी दी जाती है।
Sumitranandan Pant Ko Sahitya Akadami Puraskar Kis Kriti Par Mila Tha?
सुमित्रानंदन पंत को साहित्य (Sumitranandan Pant ka Sahityik Parichay) अकादमी पुरस्कार 1960 में मिला था। उन्हें यह पुरस्कार उनकी हिंदी के प्रसिद्ध के कारण उनकी रचना 'काला और बूढ़ा चांद’ के लिएसम्मानित किया गया था।
About Sumitranandan Pant In Hindi | सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार व सम्मान
(Sumitranandan Pant Ka Jeevan Parichay) सुमित्रानंदन पंत को बहुत सारे पुरस्कार मिले हैं। वैसे तो उनकी साहित्य साधना के लिए उन्हें मिले कुछ प्रमुख साहित्यिक पुरस्कार (Sumitranandan Pant awards) व सम्मान नीचे बताए गए हैं:
1960 में उन्हें काव्य संग्रह ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
1961 में सुमित्रानंदन पंत जी (about Sumitranandan Pant in hindi) को ‘पद्मभूषण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था यह पुरस्कारों ने भारत सरकार ने साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए दिया था।
1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत जी को यानी की ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ को सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत के सम्मान में भारत सरकार ने ‘डाक टिकट’ भी किया है।
Sumitranandan Pant Ki Mrityu Kab Hui | सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु कब हुई?
(Sumitranandan Pant ki mrityu kab hui) सुमित्रानंदन पंत की मृत्यु 28 दिसंबर 1977 को हुई थी। इस दिन हिंदी साहित्य का प्रकाशपुंज संगम नगरी इलाहाबाद में हमेशा के लिए बुझ गया। आपको बता दे की सुमित्रानंदन पंत जी को आधुनिक हिंदी साहित्य का युग प्रवर्तक कवि भी माना जाता है।
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निष्कर्ष | Conclusion
उम्मीद है आपको हमारी पोस्ट सुमित्रानंदनपंत का साहित्यिक परिचय (Sumitranandan Pant ka Sahityik Parichay) अच्छा लगा होगा। आपको इससे काफी जानकारी (Sumitranandan Pant biography in Hindi) भी मिली होगी। इस पोस्ट में हमने आपको सुमित्रानंदन पंत के जीवन परिचय (Sumitranandan Pant ka Sahityik Parichay) के बारे में बताया है उनकी शिक्षा, उनका जन्म, उनका जन्म स्थान, उन्हें मिले हुए पुरस्कार तथा उनकी मृत्यु कब हुई। आपको हमारे वेबसाइट पर काफी इस तरह की जानकारी मिलेगी इसलिए हमेशा infoinhindi.in के साथ जुड़े रहे।
FAQ | पूछे जाने वाले प्रश्न
1. सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में क्या स्थान है?
सुमित्रानंदन पंत का साहित्य में स्थान छायावादी काव्यधारा केचार प्रमुख स्तंभों में से एक है।
2. सुमित्रानंदन पंत का दूसरा नाम क्या है?
सुमित्रानंदन पंत का दूसरा नाम गोसाई दत्त है।
3. सुमित्रानंदन पंत की भाषा कौन सी है?
सुमित्रानंदन पंत की भाषा पदावली से युक्त खड़ी बोली है। उनकी शैली संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी के कवियों से आत्मक मुक्तक शैली से प्रभावित भी है।
4. सुमित्रानंदन पंत का युग क्या है?
सुमित्रानंदन पंत का युग ‘छायावादी युग’ है।
5. सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम क्या था?
सुमित्रानंदन पंत का वास्तविक नाम ‘गोसाई दत्त’ था।
6. सुमित्रानंदन पंत की पहली कविता कौन सी है?
सुमित्रानंदन पंत की पहली कविता ‘वीणा’ है। यह कविता उन्होंने 1918 में लिखी थी जिसे उन्होंने ‘तुतली बोली में एक बालिका का उपहार’ भी कहा है।
7. सुमित्रानंदन पंत ने अपना नाम क्यों बदला?
सुमित्रानंदन पंत ने अपना नाम इसलिए बदल दिया था क्योंकि उन्होंने कहा था कि - “गोसाई में मुझे गोस्वामी तुलसीदास जी की झलक दिखती है। तुलसीदास जी एक महान विद्वान थे लेकिन उनका जीवन हमेशा दुख में बीता है कहीं नाम में सामानता के कारण मुझे भी तुलसीदास की तरह दुख न झेलना पड़े” इसलिए उन्होंने अपना नाम बदल दिया।